Target Tv Live

तिगरी धाम गंगा मेला में ‘VVVIP कल्चर’ की छाया — अफसरों की हनक, मंत्री-विधायक की दूरी और जनता की बेबसी!

तिगरी धाम गंगा मेला में ‘VVVIP कल्चर’ की छाया — अफसरों की हनक, मंत्री-विधायक की दूरी और जनता की बेबसी!
                             सोशल मीडिया पोस्ट

जहां गंगा की लहरों में भक्ति का प्रवाह होना था, वहां दिखा दिखावे का तामझाम, अफसरशाही का रोब और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का मंजर।

स्पेशल रिपोर्ट: अवनीश त्यागी|
स्थान: अमरोहा | दिनांक: 2 नवंबर, 2025

मुख्य रिपोर्ट:

गंगा तट का पवित्र धाम — तिगरी मेला — जहां आस्था, आध्यात्म और लोक संस्कृति का अनोखा संगम होता है, इस बार अफसरशाही की परछाइयों और वीवीआईपी कल्चर की गर्म हवा में झुलसता नजर आया।

श्रद्धालु जहां गंगा मैया के दर पर सिर झुकाने पहुंचे थे, वहीं अफसरों और अतिविशिष्ट अतिथियों के तंबुओं में ‘शाही मेले’ का दृश्य था।
दिन के उजाले में कुछ ऐसा साक्षात्कार हुआ जिसने कई पुरानी सच्चाइयों को उजागर कर दिया —
अफसरों के आलीशान बंगले जैसे टेंट, खास मेहमानों के लिए ‘टाइप-8’ जैसी सुविधाएं, और जनप्रतिनिधियों के लिए ‘प्रतीक्षा सूची’ जैसा व्यवहार।

सोशल मीडिया पर छिड़ा ‘VVVIP बनाम आम आदमी’ का संग्राम:

शनिवार रात से ही सोशल मीडिया पर पोस्टों और टिप्पणियों की बाढ़ आ गई।
एक वायरल संदेश में लिखा गया —

“मुख्यमंत्री जी कहते हैं VVVIP कल्चर छोड़ो, संगठन कहता है आम आदमी बनो — पर यहां तो अफसर और मंत्री दोनों ही आम आदमी से कोसों दूर हैं। दो घंटे आओ, फोटो खिंचवाओ, गुब्बारे उड़ाओ और चले जाओ!”

एक अन्य पोस्ट में तीखा व्यंग्य था —

“जनप्रतिनिधियों के बंगले जैसे टेंट तो सजे, पर किसी ने गंगा में डुबकी लगाना जरूरी नहीं समझा। लगता है आस्था अब फाइलों में सिमट गई है और व्यवस्था ‘टेंट सिटी’ तक सीमित रह गई है।”

प्रभारी मंत्री की अनुपस्थिति बनी सवालों का केंद्र:

अमरोहा के प्रभारी मंत्री और धनोरा विधायक श्री राजीव तरारा की तिगरी धाम में अनुपस्थिति ने चर्चा का बड़ा विषय खड़ा कर दिया।
लोगों ने सीधे पूछा —

“जिस विधानसभा का ये मेला है, उसी के विधायक कहां हैं? क्या उन्हें बुलाया ही नहीं गया, या बुलाकर अनदेखा कर दिया गया?”

कुछ समर्थकों ने कहा कि “तरारा जी जनता के प्रति भावुक और संवेदनशील जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन इस बार शायद प्रशासनिक उदासीनता ने उन्हें किनारे कर दिया।”
जनता के मन में सवाल है —
क्या ये ‘धार्मिक आयोजन’ अब ‘अफसरों का प्रोजेक्ट’ बन गया है?

अफसरशाही की ‘हनक’ पर खुली चर्चा:

सबसे तीखी आलोचना आई मेला अधिकारी अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) के रवैये पर।
कई कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उन्होंने न किसी जनप्रतिनिधि से संवाद किया, न किसी सामाजिक संगठन से सुझाव लिया।

“एडीएम साहिब न किसी को जानती हैं, न जानना चाहती हैं। उनके लिए पद ही पहचान है — बाकी सब भीड़ है।”

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इस बार मेला प्रबंधन पूरी तरह “ऊपर से नीचे तक” अफसरशाही के दायरे में रहा।
“टेंट सिटी” जैसी योजनाएं बनीं, पर आम श्रद्धालुओं को बुनियादी सुविधाएं — जैसे शौचालय, पेयजल, सफाई और यातायात व्यवस्था — में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

‘मंच संस्कृति’ पर भी उठे सवाल:

मेला मंच पर सम्मानित होने वालों की सूची में कई ऐसे चेहरे दिखाई दिए जिनका न मेले से सीधा संबंध था, न श्रद्धालुओं से कोई जुड़ाव।
एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कटाक्ष किया —

“जिन्हें मंच पर नहीं होना चाहिए था, वही सबसे आगे थे। और जो असली योगदानकर्ता थे, उन्हें आमंत्रण तक नहीं मिला। यह सम्मान नहीं, अपमान का मंच था।”

जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा पर नाराज़गी:

सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी में लिखा गया —

“जनप्रतिनिधियों को तो तुच्छ समझा जा रहा है। शुरुआत से ही उनके साथ सौतेला व्यवहार हुआ। विधायक के क्षेत्र का मेला होते हुए भी कोई प्राथमिक भूमिका नहीं दी गई।”

जिला पंचायत अध्यक्ष ललित जी की ओर से मंच पर सम्मान के दृश्य भी चर्चा में रहे — जहां उन्होंने बड़ों के प्रति आदर दिखाकर उदाहरण पेश किया, पर कई लोगों ने यह सवाल भी उठाया कि “क्या प्रशासन ने इस आदर की भावना को साझा किया?”

गंगा मेला या सरकारी मेला? — बड़ा प्रश्न:

गंगा मेला का असली अर्थ जनता की भागीदारी और आस्था के मेल से है।
लेकिन इस बार सबकुछ किसी सरकारी इवेंट की तरह दिखा।
आम श्रद्धालु रेत पर कतारों में संघर्ष करते रहे, और अफसरों के शिविरों में वातानुकूलित व्यवस्था चलती रही।

“आस्था का मेला अब व्यवस्था का तमाशा बन गया है,”
एक वरिष्ठ नागरिक ने कहा —
“गंगा की लहरों में अब भक्तों की नहीं, अफसरों की नावें तैर रही हैं।”

समापन विश्लेषण:

तिगरी धाम मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोकसंस्कृति और जनभावना का प्रतीक है।
लेकिन जब “अहम”, “विशेषाधिकार” और “वीवीआईपी कल्चर” इस पवित्र आयोजन पर हावी हो जाएं, तो संदेश बहुत स्पष्ट होता है —

“गंगा के किनारे आस्था नहीं, व्यवस्था का अभिमान उतर आया है।”

अब सवाल जनता का है — क्या आने वाले आयोजनों में ये ‘शाही परंपरा’ बदलेगी?
या फिर ‘आम आदमी के मेला’ का नाम लेकर ‘खास लोगों का प्रदर्शन’ यूं ही चलता रहेगा?

#TigriMela #GangaMela2025 #VVIPCulture #Afsarshahi #RajeevTarara #Amroha News #Target Tv Live #Gangasnan #LokAwaz #TigriDham

 

Leave a Comment

यह भी पढ़ें