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अंतर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव: सांस्कृतिक एकता का वैश्विक मंच

अंतर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव: सांस्कृतिक एकता का वैश्विक मंच

 

लखनऊ : श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक बना, बल्कि इसने सनातन परंपरा को वैश्विक पहचान देने का भी कार्य किया। यह आयोजन अंतर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान और संस्कृति विभाग के सहयोग से किया गया, जिसमें भारत, श्रीलंका और नेपाल सहित कई देशों के विद्वानों, संतों और सांस्कृतिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

रामायण: भारतीय संस्कृति का वैश्विक विस्तार

कार्यक्रम में श्रीलंका के सांसद एवं पूर्व मंत्री श्री मनो गनेशन और श्री राधाकृष्णनन, रामकृष्ण मिशन के स्वामी अक्शरात्मानंद, चिन्मय मिशन के स्वामी गुनैतियानंद, और उत्तर प्रदेश के एडिशनल एडवोकेट जनरल श्री अशोक मेहता जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों की उपस्थिति ने इसे एक उच्चस्तरीय मंच बना दिया। भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से, इस कॉन्क्लेव में भरतनाट्यम और अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने दर्शकों को भारतीय कलाओं की समृद्धि से परिचित कराया।

श्रीराम: मर्यादा पुरुषोत्तम से वैश्विक आदर्श तक

उत्तर प्रदेश के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री जयवीर सिंह ने अपने संदेश में श्रीराम को सत्य, मर्यादा और धर्म का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि संस्कृति और आस्था को वैश्विक मंच देने का माध्यम भी हैं। श्रीराम की गाथा केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में भी उनकी गहरी सांस्कृतिक छाप देखी जाती है।

सांस्कृतिक कूटनीति और भारत की भूमिका

इस आयोजन का एक महत्वपूर्ण पहलू सांस्कृतिक कूटनीति भी रहा। भारत और श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक संबंधों को रामायण एक कड़ी के रूप में जोड़ता है। यह आयोजन दोनों देशों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान को और मजबूत करने का कार्य करेगा। भारत सरकार द्वारा रामायण कॉन्क्लेव को विभिन्न देशों में आयोजित करने की रणनीति एक बड़े सांस्कृतिक और धार्मिक पुनर्जागरण का संकेत देती है।

समापन और भविष्य की संभावनाएँ

अंतर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव की यह श्रृंखला 2 अप्रैल को जम्मू में अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचेगी। इस आयोजन के जरिए राम वन गमन पथ से जुड़े स्थानों और भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। भविष्य में भी इस तरह के आयोजनों से सनातन परंपरा, लोक संस्कृति और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारत की सांस्कृतिक पहचान और मजबूत होगी।

अंतर्राष्ट्रीय रामायण कॉन्क्लेव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की नरम शक्ति (Soft Power) और सांस्कृतिक प्रभाव को मजबूत करने का एक प्रभावी साधन बनता जा रहा है। इस तरह के मंच विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक सहयोग और संवाद को प्रोत्साहित करते हैं। इससे न केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को बल मिलेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति और सभ्यता की व्यापक स्वीकृति भी सुनिश्चित होगी।

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