Target Tv Live

सिद्धबली महोत्सव के बाद ग्रीन आर्मी का मेगा स्वच्छता अभियान: 80 बैग कूड़ा उठाकर दिया सशक्त संदेश — “आस्था के बाद जिम्मेदारी भी हमारी”

सिद्धबली महोत्सव के बाद ग्रीन आर्मी का मेगा स्वच्छता अभियान: 80 बैग कूड़ा उठाकर दिया सशक्त संदेश — “आस्था के बाद जिम्मेदारी भी हमारी”

सैकड़ों श्रद्धालु, 100+ युवा स्वयंसेवक, कई संस्थाएँ… कोटद्वार में चला अब तक का सबसे संगठित सफाई अभियान

सिद्धबली बाबा की नगरी में दिखा नया रूप — श्रद्धा, अनुशासन और स्वच्छता का अनूठा संगम

कोटद्वार। श्री सिद्धबली बाबा मंदिर का वार्षिक महोत्सव हर साल भक्तों की भीड़, अनुष्ठानों, झांकियों और आध्यात्मिक उल्लास का केंद्र होता है। लेकिन इस बार महोत्सव एक नवीन पहचान के साथ सामने आया—संगठित स्वच्छता आंदोलन का मॉडल

ग्रीन आर्मी देवभूमि उत्तराखंड ने जिस तरह तीन दिनों के भीतर मंदिर परिसर से लेकर शहर के प्रमुख स्थलों तक सफाई अभियान चलाया, उसने साबित कर दिया कि भक्ति के बाद कर्तव्य का पालन ही सच्चा धर्म है।

5 दिसंबर—स्वच्छता की पहली लहर: ‘सिद्धों का डांडा’ से लेकर कार्यक्रम ग्राउंड तक साफ-सफाई

अनुष्ठान के प्रथम दिवस 5 दिसंबर को हजारों भक्तों के आगमन से पहले स्वयंसेवकों ने वह जिम्मेदारी निभाई, जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।

  • साफ-सफाई की शुरुआत मंदिर के भू-आध्यात्मिक मूल स्थान ‘सिद्धों का डांडा’ से की गई।
  • कूड़ा, पत्ते, खाद्य अवशेष, प्लास्टिक और पूजा सामग्री को वैज्ञानिक तरीके से अलग-अलग बैगों में इकट्ठा किया गया।
  • शाम की भव्य शोभा यात्रा के बाद नगर में भी सफाई टीम ने मोर्चा संभाला और देर रात तक अभियान जारी रखा।

यही वह क्षण था जब स्थानीय लोगों ने महसूस किया कि इस बार महोत्सव केवल आध्यात्मिक नहीं बल्कि पर्यावरणीय स्तर पर भी विशेष होने जा रहा है।

8 दिसंबर—सबसे बड़ा अभियान: मंदिर से शहर तक फैला ‘स्वच्छता कवच’

8 दिसंबर को अभियान ने सबसे बड़े रूप में प्रवेश किया। यह केवल सफाई अभियान नहीं बल्कि एक सुव्यवस्थित, रणनीतिक और सामूहिक प्रयास था।

प्रमुख क्षेत्रों में गहन सफाई

स्वयंसेवकों ने टीमों में बंटकर यहां सफाई की:

  • श्री सिद्धबली मंदिर परिसर
  • नवदुर्गा मंदिर मंडल
  • डीएफओ कार्यालय मार्ग
  • श्री फलाहारी बाबा मंदिर
  • सिद्धबली पार्क
  • और आसपास के प्रमुख मार्ग, गलियां व श्रद्धालुओं के विश्राम स्थल

खाद्य कचरे पर विशेष फोकस

महोत्सव में सबसे अधिक कचरा खाद्य सामग्री से निकलता है—
जैसे पत्तल, ग्लास, पैकेट, शेष प्रसाद।
टीम ने इन्हें सावधानीपूर्वक अलग-अलग बैगों में भरा और नगर निगम के कूड़ा वाहन तक पहुंचाया।
प्लास्टिक और बायो-वेस्ट को अलग रखना इस अभियान का वैज्ञानिक और सराहनीय पक्ष था।

📌 80 बैग से अधिक कूड़ा—कड़ी मेहनत और टीम स्पिरिट का नतीजा

अभियान का सबसे बड़ा परिणाम—

👉 80 से अधिक बड़े कूड़ेदान बैग भरकर साफ किए गए।

यह केवल संख्या नहीं बल्कि इस महोत्सव की भीड़, व्यवस्था और स्वयंसेवकों की अथक मेहनत का ज्वलंत प्रमाण है।

अगर यह कूड़ा एकत्र न किया जाता तो—

  • मंदिर परिसर गंदगी से भर जाता,
  • स्थानीय पर्यावरण प्रभावित होता,
  • और नगर निगम पर अतिरिक्त भार पड़ता।

यह सफलता दिखाती है कि सामुदायिक शक्ति जब संगठित होती है, तो किसी भी समस्या का समाधान बड़े स्तर पर संभव है।

महिला स्वयंसेवकों का नेतृत्व—प्रणीता कंडवाल और रुचि नेगी बनीं अभियान की प्रेरणा

दोनों ने न केवल स्वयं सफाई अभियान में हिस्सा लिया बल्कि विभिन्न टीमों का मार्गदर्शन भी किया।
उनकी मौजूदगी ने खासकर छात्राओं और बालिका स्वयंसेवकों को सक्रिय रूप से जुड़ने की प्रेरणा दी।

सामुदायिक कार्यों में महिलाएँ नेतृत्व कर सकती हैं — इसका शानदार उदाहरण कोटद्वार ने इस दिन देखा।

ग्रीन आर्मी और संस्थाओं का संयुक्त प्रयास—यही है ‘रियल ग्राउंड मॉडल’

अभियान में शामिल प्रमुख चेहरे:

  • शिवम् नेगी, अध्यक्ष — ग्रीन आर्मी
  • उत्कर्ष नेगी, सचिव
  • सौरभ धूलिया, कोषाध्यक्ष
  • भूपेंद्र रावत, एनएसएस प्रभारी
  • मंदीप रावत, आर.डी. पब्लिक स्कूल
  • प्रणीता कंडवाल, रुचि नेगी
  • स्वयंसेवक: हिमांशु रावत, सुशांत कोहली, सतेंद्र सिंह गुसाईं, ज्योति सजवान, अंकित थपलियाल, अभय जुयाल आदि

इन सभी के तालमेल ने यह अभियान केवल सफाई कार्यक्रम नहीं बल्कि एक अनुशासित आंदोलन बना दिया।

विश्लेषण: यह अभियान क्यों बना ‘रोल मॉडल’?

1. धार्मिक आयोजनों के बाद कचरे की बड़ी चुनौती—इस बार समाधान मिला

सालों से बड़े धार्मिक आयोजनों के बाद कूड़ा प्रबंधन एक समस्या रहा है। सिद्धबली महोत्सव ने इस बार नया रास्ता दिखाया।

2. युवा शक्ति का संगठित उपयोग — शिक्षा संस्थानों की भागीदारी

दो बड़े शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों ने यह साबित किया कि नई पीढ़ी केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं बल्कि पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को भी समझती है।

3. समाज को संदेश — “भक्ति करो लेकिन प्रकृति को न भूलो”

आस्था के साथ स्वच्छता एक दोहरी जिम्मेदारी है। इस अभियान ने यह संदेश जमीन पर लागू करके दिखाया।

4. प्रशासन, समाज और संस्थाओं का तालमेल — एक व्यवहारिक मॉडल

नगर निगम, स्कूलों और ग्रीन आर्मी का समन्वय दिखाता है कि सही योजना से बड़े आयोजन भी बिना प्रदूषण के सफल हो सकते हैं।

निष्कर्ष: सिद्धबली महोत्सव ने इस बार केवल आस्था ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का इतिहास भी रचा

यह स्वच्छता अभियान इस बात का प्रमाण है कि—
मंदिर हो या महोत्सव, भीड़ हो या जश्न—प्रकृति से बड़ा कोई देवता नहीं।

ग्रीन आर्मी और युवा स्वयंसेवकों ने जिस जज्बे से सफाई अभियान चलाया, उसने कोटद्वार को एक नई पहचान दी है।
यह मॉडल आने वाले वर्षों में देवभूमि के हर धार्मिक आयोजन में प्रेरणा बनेगा।

Leave a Comment

यह भी पढ़ें