बाँदा से उठी सामान्य वर्ग की बुलंद आवाज़: “अब खत्म हो जातिगत आरक्षण – मिले सबको समान अवसर”
राष्ट्रपति के नाम सौंपा गया ज्ञापन, SC/ST एक्ट में सुधार और ‘सवर्ण आयोग’ के गठन की भी जोरदार मांग
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📍 बाँदा | ब्यूरो रिपोर्ट | 24 अक्टूबर 2025
🔹 “समानता का अधिकार अब नारे से आगे, हकीकत बने” — बाँदा में सामान्य वर्ग का हुंकार
उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले से सामान्य वर्ग के हितों को लेकर एक नई सामाजिक मुहिम का बिगुल बज गया है।
सुवर्ण धामी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने महामहिम राष्ट्रपति महोदय को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से सौंपा, जिसमें जातिगत आरक्षण, SC/ST एक्ट के दुरुपयोग और सामान्य वर्ग के लिए आयोग गठन की मांगों को जोरदार ढंग से उठाया गया।
यह ज्ञापन केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि “समान अवसर और समान न्याय” की पुकार के रूप में देखा जा रहा है।
जातिगत आरक्षण पर पुनर्विचार की मांग — “योग्यता ही बने अवसर का आधार”
ज्ञापन में कहा गया है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी देश में जातिगत आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक न्याय के नाम पर असमानता की नई दीवारें खड़ी कर रही है।
प्रतिनिधियों ने तर्क दिया कि —
“आरक्षण का आधार जाति नहीं, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति होनी चाहिए।”
उनका कहना था कि सामान्य वर्ग में भी बड़ी संख्या में परिवार गरीबी, बेरोजगारी और पिछड़ेपन से जूझ रहे हैं, लेकिन उन्हें सरकारी योजनाओं और नौकरियों में बराबरी का अवसर नहीं मिलता।
SC/ST एक्ट बना डर का कानून — “कई निर्दोष फंसाए जा रहे हैं”
ज्ञापन में सबसे तीखा हमला SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम पर किया गया।
सुवर्ण धामी और सहयोगियों ने कहा कि इस कानून की मूल भावना सामाजिक सुरक्षा की थी, पर अब इसका दुरुपयोग “प्रतिशोध के हथियार” के रूप में हो रहा है।
उन्होंने दावा किया कि –
- इस एक्ट के तहत कई निर्दोष लोगों पर झूठे मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं।
- सामाजिक प्रतिष्ठा नष्ट होने का डर लोगों के मन में गहराई तक बैठ गया है।
- कई मामलों में तो लोग आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं।
ज्ञापन में मांग की गई कि इस कानून की समीक्षा हो या इसे समाप्त किया जाए ताकि न्याय का संतुलन कायम रह सके।
सामान्य वर्ग आयोग की मांग — “हमारी भी सुनी जाए आवाज़”
ज्ञापन में कहा गया कि जैसे देश में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए आयोग हैं, वैसे ही सामान्य वर्ग के लिए भी एक स्वतंत्र “सवर्ण आयोग” का गठन आवश्यक है।
यह आयोग सामान्य वर्ग की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक समस्याओं पर ध्यान देगा और नीति निर्धारण में उनकी आवाज़ को जगह दिलाएगा।
सुवर्ण धामी का बयान — “समानता ही सच्चे भारत की पहचान”
नेतृत्व कर रहे सुवर्ण धामी ने कहा,
“हम किसी वर्ग के विरोधी नहीं, लेकिन आरक्षण का ढांचा अब न्यायसंगत नहीं रहा।
हर भारतीय को केवल उसकी योग्यता और परिश्रम के आधार पर अवसर मिलना चाहिए।
यह आंदोलन राष्ट्रहित का है, राजनीति का नहीं।”
उनके साथ उपस्थित सर्वेश पाण्डेय (समन्वयक/संरक्षक), ठाकुर शिवम सिंह (सह-समन्वयक/विस्तारक), और आर.के. द्विवेदी (जिलाध्यक्ष, बाँदा) ने भी एक स्वर में कहा कि यदि सरकार ने सामान्य वर्ग की आवाज़ को नहीं सुना, तो देशभर में यह आंदोलन तेज़ी पकड़ सकता है।
पृष्ठभूमि: आरक्षण नीति पर देशव्यापी मंथन की जरूरत
भारत में आरक्षण की व्यवस्था संविधान प्रदत्त है, जिसका उद्देश्य था— सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना।
परंतु समय के साथ यह नीति “समावेशन से ज्यादा राजनीतिक साधन” बनती जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि –
- अब आरक्षण को आर्थिक आधार पर पुनः परिभाषित करने की जरूरत है।
- समाज में नई पीढ़ी समान अवसर और योग्यता आधारित व्यवस्था की मांग कर रही है।
- जातिगत वर्गीकरण अब रोज़गार, शिक्षा और प्रतिस्पर्धा के मूल भाव को कमजोर कर रहा है।
विश्लेषण: क्या यह नया सामाजिक आंदोलन आकार ले रहा है?
बाँदा की यह पहल अब केवल एक ज्ञापन तक सीमित नहीं रहेगी।
देश के विभिन्न हिस्सों में सामान्य वर्ग के संगठन “समान अवसर अभियान” जैसे आंदोलनों की तैयारी कर रहे हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आने वाले चुनावों में भी एक प्रमुख सामाजिक विमर्श बन सकता है।
समानता की ओर एक नया कदम
बाँदा से उठा यह स्वर एक नए सामाजिक संतुलन की ओर संकेत देता है।
जहां एक ओर समाज को न्याय चाहिए, वहीं दूसरी ओर हर वर्ग को गरिमा के साथ जीने का अवसर भी।
अगर यह आवाज़ सही दिशा में ले जाई गई, तो यह आंदोलन “नई सामाजिक समानता क्रांति” का रूप भी ले सकता है।








