करंट से झुलसा संविदा लाइनमैन – हादसे ने उजागर की बिजली विभाग की लापरवाही
तय्योपुर बिजली घर, बिजनौर का मामला : शटडाउन के बाद भी छोड़ी गई लाइन, भाकियू ने किया घेराव
बिजनौर (बढ़ापुर)।
तय्योपुर बिजली घर में शटडाउन लेने के बाद पोल पर काम कर रहे संविदा लाइनमैन के झुलसने की घटना ने एक बार फिर बिजली विभाग की कार्यप्रणाली और संविदा कर्मियों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
📍 हादसे की हकीकत
- संविदा कर्मी शटडाउन लेने के बाद पोल पर चढ़ा और काम शुरू किया।
- अचानक लाइन चालू हो गई और करंट की चपेट में आने से वह गंभीर रूप से झुलस गया।
- घायल कर्मी को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जबकि परिजनों और ग्रामीणों ने बिजली विभाग पर जानलेवा लापरवाही का आरोप लगाया।
मौके पर गुस्सा, बिजली घर का घेराव
- घटना की जानकारी पर भाकियू (अराजनैतिक) के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में पहुंचे।
- बिजली घर का घेराव कर दोषी अफसरों पर कार्रवाई और घायल को मुआवजा देने की मांग की गई।
- पुलिस और विभागीय अधिकारी मौके पर पहुंचे और जांच का आश्वासन देकर लोगों को शांत किया।
संविदा कर्मियों की दुर्दशा : आंकड़े बोलते हैं
- उत्तर प्रदेश में लगभग 75,000 से अधिक लाइनमैन और तकनीकी कर्मचारी संविदा पर कार्यरत हैं।
- इनमें से अधिकांश को सुरक्षा उपकरण (ग्लव्स, हेलमेट, बेल्ट, शूज़) उपलब्ध नहीं कराए जाते।
- पिछले पाँच वर्षों में 350 से अधिक संविदा कर्मियों की करंट लगने से मौत हो चुकी है।
- बिजनौर जनपद में ही औसतन हर साल 3-4 संविदा कर्मी हादसों का शिकार हो रहे हैं।
- अधिकांश मामलों में परिजनों को न तो पर्याप्त मुआवजा मिलता है, न स्थायी नौकरी।
पिछले हादसों के उदाहरण
- 2023, सहारनपुर – शटडाउन के बावजूद लाइन चालू होने से दो संविदा कर्मियों की मौके पर मौत।
- 2024, मुरादाबाद – करंट लगने से झुलसे लाइनमैन की अस्पताल में मौत, परिवार को केवल 2 लाख रुपये का मुआवजा।
- 2025, बिजनौर – किरटपुर क्षेत्र में पोल पर कार्य करते समय करंट लगने से संविदा कर्मी की मौत, विभाग ने जांच का भरोसा दिया लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
किसानों और संगठनों की मांग
भाकियू और स्थानीय ग्रामीणों ने मांग की है कि—
- घायल लाइनमैन को फौरन मुआवजा और मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया जाए।
- संविदा कर्मियों को स्थायी भर्ती या कम से कम 20 लाख रुपये बीमा कवर दिया जाए।
- शटडाउन प्रक्रिया की निगरानी के लिए जिम्मेदार अधिकारी मौके पर मौजूद रहें।
- दोषियों पर सख्त कार्रवाई कर विभागीय जवाबदेही तय की जाए।
निष्कर्ष : मौत से जूझते कर्मी, खामोश सिस्टम
संविदा कर्मी रोज अपनी जान जोखिम में डालकर गांव-गांव बिजली बहाल करते हैं। लेकिन हर हादसे के बाद विभागीय जांच और खानापूर्ति ही होती है।
जब तक संविदा कर्मियों की सुरक्षा और अधिकारों की गारंटी नहीं होगी, तब तक ऐसे हादसे लगातार उनकी जिंदग़ी छीनते रहेंगे और परिवार तबाही झेलते रहेंगे।







