उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण पर बवाल: चण्डीगढ़ मॉडल हुआ फेल, कर्मचारियों ने दी चेतावनी
विशेष संवाददाता।
बिजली उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के लिए बड़ी ख़बर।
लखनऊ। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने सरकार से मांग की है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण का निर्णय तत्काल निरस्त किया जाए। समिति का कहना है कि चण्डीगढ़ और उड़ीसा जैसे उदाहरण पहले ही साबित कर चुके हैं कि निजीकरण बिजली आपूर्ति के लिए “विफल प्रयोग” है।
संघर्ष समिति की प्रमुख दलीलें
- चण्डीगढ़ टेस्ट केस फेल: फरवरी 2025 में चण्डीगढ़ का निजीकरण किया गया, लेकिन अब वहां रोज़ाना 2 से 6 घंटे बिजली कटौती हो रही है।
- उपभोक्ता परेशान: मेयर हरप्रीत कौर बाबला और रेजिडेंट वेलफेयर फेडरेशन अध्यक्ष हितेश पुरी ने भी माना कि शिकायतों पर सुनवाई नहीं हो रही और हेल्पलाइन बंद पड़ी है।
- आर.एफ.पी. में गड़बड़ी: चण्डीगढ़ की 22,000 करोड़ की संपत्ति महज़ 871 करोड़ में बेची गई।
- यूपी में भी वैसा ही खेल: पूर्वांचल व दक्षिणांचल की 1 लाख करोड़ की परिसंपत्तियां केवल 6500 करोड़ की रिजर्व प्राइस पर निजी हाथों में सौंपने की तैयारी।
यूपी के पुराने निजीकरण मॉडल की पोल
- ग्रेटर नोएडा मामला: खराब परफॉर्मेंस के कारण यूपी सरकार को खुद सुप्रीम कोर्ट में जाकर निजीकरण अनुबंध रद्द कराने की मांग करनी पड़ी।
- आगरा मॉडल: टोरेंट पावर ने 2200 करोड़ का राजस्व हड़प लिया और सस्ती बिजली देने से निगम को 10,000 करोड़ का घाटा हुआ।
प्रदेशभर में उबाल
संघर्ष समिति ने बताया कि वाराणसी, गोरखपुर, प्रयागराज, मेरठ, आगरा, बस्ती, आज़मगढ़, मिर्जापुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, नोएडा, बरेली, अयोध्या, मथुरा, अलीगढ़ सहित 25 से अधिक जिलों में जबरदस्त प्रदर्शन किए गए।
कर्मचारियों का कहना है कि यह लड़ाई सिर्फ कर्मचारियों की नहीं बल्कि आम उपभोक्ताओं की भी है।
विश्लेषण: क्यों विफल होता है निजीकरण?
- मुनाफे पर केंद्रित कंपनियां – गरीब और ग्रामीण उपभोक्ताओं के हित की अनदेखी।
- राजस्व हेरफेर और घाटे का बोझ – निजी कंपनियां सस्ती दर पर बिजली लेकर महंगे दाम पर बेचती हैं।
- जवाबदेही का अभाव – उपभोक्ता शिकायतों के निस्तारण की कोई गारंटी नहीं।
- सरकारी मॉडल पर दोहरा बोझ – नुकसान की भरपाई अंततः जनता के टैक्स से।
आगे की राह
- संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि यदि निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन और तेज़ होगा।
- यह मुद्दा सिर्फ बिजली उपभोक्ताओं का नहीं, बल्कि प्रदेश की आर्थिक सुरक्षा से भी जुड़ा है।
- सरकार को तय करना होगा कि वह “जनहित” देखेगी या “कॉरपोरेट हित”
चण्डीगढ़ और उड़ीसा जैसे उदाहरणों ने यह साबित कर दिया है कि बिजली का निजीकरण जनता को राहत नहीं, बल्कि संकट देता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के 42 ज़िलों पर यह “प्रयोग” थोपना जनता को बिजली संकट में झोंकने जैसा होगा।










