हिमालय दिवस पर बच्चों की आवाज़: “हिमालय बचाओ, प्रकृति बचाओ”
कोटद्वार में वृक्ष मित्र समिति का अनूठा आयोजन, कवि गिर्दा को दी भावभीनी श्रद्धांजलि
हाइलाइट्स
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हिमालय दिवस पर कोटद्वार में वृक्ष मित्र समिति ने आयोजित की जागरूकता गोष्ठी
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बच्चों ने योग और सांस्कृतिक प्रस्तुति से दी संदेशपूर्ण शुरुआत
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विशेषज्ञों ने दैनिक जीवन की छोटी आदतों को बदलने का दिया मंत्र
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भूस्खलन, अतिक्रमण और वनों की कटाई पर गहन चर्चा
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जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा की कविताओं ने जगाई चेतना
हिमालय: केवल पहाड़ नहीं, हमारी पहचान
कोटद्वार स्थित ई-टेक्नो माइंड में आयोजित इस गोष्ठी का मूल संदेश यही रहा कि हिमालय सिर्फ ऊंची-ऊंची चोटियां नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और अस्तित्व का प्रतीक है।
वृक्ष मित्र समिति ने हिमालय दिवस के अवसर पर बच्चों और युवाओं को जोड़कर यह बताने की कोशिश की कि—
👉 अगर हम हिमालय की रक्षा नहीं करेंगे, तो हमारी पीढ़ियों का भविष्य संकट में पड़ जाएगा।
बच्चों की प्रस्तुति ने जीता दिल
कार्यक्रम की शुरुआत बच्चों ने सामूहिक योग प्रस्तुति से की।
योग ने न केवल स्वास्थ्य और अनुशासन का संदेश दिया बल्कि यह भी दिखाया कि प्रकृति से जुड़ाव तभी संभव है जब शरीर और मन दोनों संतुलित हों।
इसके बाद बच्चों ने सवाल-जवाब और चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिससे पता चला कि छोटी उम्र में ही वे पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझने लगे हैं।
वक्ताओं की प्रेरक बातें
- मितेश्वर आनंद (असिस्टेंट कमिश्नर, GST, कोटद्वार):
उन्होंने बच्चों और श्रोताओं को सरल उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि—
“हम रोजमर्रा की जिंदगी में यदि प्लास्टिक का प्रयोग बंद कर दें, जल और बिजली का कम से कम उपयोग करें और एक पेड़ लगाकर उसकी देखभाल करें, तो हिमालय की रक्षा में बड़ा योगदान दे सकते हैं।” - एकता रावत (प्रधानाचार्य, स्कॉलर्स एकेडमी):
उन्होंने पहाड़ी इलाकों में लगातार बढ़ते भूस्खलन को लेकर चिंता जताई। उनका कहना था कि अंधाधुंध विकास और वनों की कटाई पहाड़ों की नींव को हिला रही है। - प्रशांत कुकरेती (संस्थापक, ज्ञानवृक्ष स्कूल):
उन्होंने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रकृति संरक्षण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज के हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
गिर्दा की पंक्तियों से गूंजा सभागार
कार्यक्रम के समापन पर जब गिरीश तिवारी गिर्दा की पंक्तियां गूंज उठीं—
“उत्तराखंड मेरी मातृभूमि, मातृभूमि मेरी पितृभूमि, ओ भूमि तेरी जै-जै कारा म्यार हिमाला…”
तो पूरा माहौल भावनात्मक और ऊर्जावान बन गया।
गिर्दा की कविताओं ने उपस्थित सभी लोगों को याद दिलाया कि हिमालय केवल भौगोलिक सीमा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक आत्मा है।
खास लोग, खास उपस्थिति
इस अवसर पर मौजूद रहे:
- मितेश्वर आनंद – असिस्टेंट कमिश्नर, GST कोटद्वार
- एकता रावत – प्रधानाचार्य, स्कॉलर्स एकेडमी
- प्रशांत कुकरेती – संस्थापक, ज्ञानवृक्ष स्कूल
- शिवम् नेगी – अध्यक्ष, ग्रीन आर्मी उत्तराखंड
- उत्कर्ष नेगी – महासचिव, ग्रीन आर्मी उत्तराखंड
- स्वयंसेवक: सुशांत कोहली, अभय जुयाल
- ई-टेक्नो माइंड का पूरा स्टाफ, बच्चे और अभिभावक
कार्यक्रम का संचालन ई-टेक्नो माइंड के संस्थापक अजय जोशी ने किया।
समाज के लिए सीख
यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि बच्चों और समाज के लिए एक पर्यावरणीय पाठशाला साबित हुआ।
👉 संदेश साफ था:
- हिमालय को बचाना है तो छोटी आदतों में बदलाव लाओ।
- पेड़ लगाना ही नहीं, उसकी देखभाल भी करो।
- प्लास्टिक से दूरी और जल-संरक्षण की आदत डालो।
- पहाड़ों के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने वाले विकास कार्यों पर सवाल उठाओ।
निष्कर्ष
आज जब जलवायु परिवर्तन, भूस्खलन और वनों की अंधाधुंध कटाई हिमालय को संकट की ओर धकेल रहे हैं, ऐसे आयोजनों की महत्ता और बढ़ जाती है।
गिर्दा की चेतावनी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है:
“मत होने दो हमारी नीलामी, मत होने दो हमारा हलाल।”
👉 बच्चों की सक्रिय भागीदारी यह संकेत है कि भविष्य की पीढ़ी हिमालय और प्रकृति को बचाने के लिए सजग और प्रतिबद्ध है।



