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प्राकृतिक खेती पर कार्यशाला में गूंजा संदेश: “जैविक खेती अपनाएं, जीवन बचाएं”

   जिला गंगा समिति बिजनौर की पहल

प्राकृतिक खेती पर कार्यशाला में गूंजा संदेश: “जैविक खेती अपनाएं, जीवन बचाएं”

स्वस्थ धरती, निर्मल गंगा और खुशहाल किसान — यही है भविष्य की सच्ची दिशा

📍 बिजनौर | 
प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने की दिशा में जिला गंगा समिति बिजनौर ने सोमवार को एक प्रेरणादायक कदम उठाया।
समिति के तत्वावधान में प्राकृतिक (जैविक) खेती पर कार्यशाला का आयोजन विकास भवन सभागार में किया गया।
यह आयोजन नमामि गंगे कार्यक्रम और कृषि विभाग/यूपी डास्प के संयुक्त सहयोग से किया गया, जिसका उद्देश्य था —
👉 किसानों को रासायनिक खेती से मुक्त कर प्राकृतिक खेती की ओर मोड़ना,
👉 पर्यावरण संरक्षण को जनआंदोलन बनाना, और
👉 गंगा नदी को प्रदूषणमुक्त रखने में किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करना।

नमामि गंगे एंथम से हुआ शुभारंभ, किसानों में दिखा उत्साह

कार्यक्रम का शुभारंभ “नमामि गंगे एंथम सॉन्ग” के साथ हुआ, जिससे सभागार में देशभक्ति और पर्यावरण संरक्षण की भावना गूंज उठी।
सभी अतिथियों का स्वागत प्रतीक चिन्ह देकर किया गया।
कार्यक्रम का संचालन नमामि गंगे जिला परियोजना अधिकारी पुलकित अग्रवाल ने किया।

प्राकृतिक खेती ही जीवन का आधार — जय सिंह कुशवाहा

प्रभागीय निदेशक (सामाजिक वानिकी प्रभाग बिजनौर) जय सिंह कुशवाहा ने कहा —

“जैविक खेती केवल उत्पादन का तरीका नहीं, बल्कि जीवन जीने का दर्शन है। यह मिट्टी, जल, वायु और मानव स्वास्थ्य को एक साथ सुरक्षित रखती है।
रासायनिक खेती ने जहां मिट्टी की ताकत छीनी है, वहीं जैविक खेती उस जीवन को वापस लाने का मार्ग है।”

उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे गोमूत्र, गोबर, जीवामृत, बीजामृत, निमास्त्र जैसे प्राकृतिक घोलों को अपनाएं और गंगा संरक्षण में अपना योगदान दें।

कृषि योजनाओं से जुड़कर बढ़ाएं आय — उप निदेशक कृषि धनश्याम वर्मा

उप निदेशक कृषि धनश्याम वर्मा ने कहा कि—

“सरकार किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए कई योजनाएं चला रही है।
किसान इन योजनाओं का लाभ उठाकर उत्पादन लागत घटा सकते हैं, मुनाफा बढ़ा सकते हैं और अपने खेतों की उर्वरता को बरकरार रख सकते हैं।”

उन्होंने किसानों को कृषि विभाग के ऑनलाइन पोर्टल, जैविक मिशन, बीज अनुदान और प्रशिक्षण योजनाओं की जानकारी दी।

किसानों की भागीदारी — स्टॉल बने आकर्षण का केंद्र

कार्यशाला में किसानों का उत्साह देखने लायक था।
गंगा ग्रामों और अन्य गांवों से आए सैकड़ों किसान जैविक खेती सीखने पहुंचे।
कृषक राहुल जवान, शुरवीर और अंकुर त्यागी ने अपने स्टॉल लगाकर जैविक उत्पाद, खाद निर्माण की विधि, फसल चक्र और रोग नियंत्रण के तरीकों का प्रदर्शन किया।

डब्ल्यू. डब्ल्यू. एफ. के प्रतिनिधि पंकज कुमार ने जीवामृत, बीजामृत और निमास्त्र पर विस्तार से जानकारी दी और बताया कि—

“इन देशी घोलों के प्रयोग से मिट्टी में जीवांश तत्व बढ़ते हैं, जिससे फसलें मजबूत और रोगमुक्त होती हैं।”

गंगा और खेती दोनों का संरक्षण — यही है असली विकास

इस कार्यशाला का सबसे बड़ा संदेश यही रहा कि —
“गंगा की निर्मलता तभी संभव है जब खेतों में रासायनिक जहर न जाए।”
प्राकृतिक खेती से न केवल पर्यावरण सुधरता है, बल्कि किसान की आमदनी भी बढ़ती है क्योंकि जैविक उत्पादों की बाजार में अधिक मांग और बेहतर मूल्य मिलता है।

💬 पुलकित अग्रवाल का संदेश — “धरती को बचाना है तो खेती को प्राकृतिक बनाना होगा”

कार्यशाला के अंत में नमामि गंगे जिला परियोजना अधिकारी पुलकित अग्रवाल ने कहा —

“यह कार्यशाला केवल प्रशिक्षण नहीं, बल्कि एक जनजागरण है।
जैविक खेती अपनाना गंगा, धरती और आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारा कर्तव्य है।
हमें रासायनिक खेती की दौड़ से निकलकर प्रकृति के साथ जुड़ना होगा।”

उन्होंने सभी कृषकों का धन्यवाद ज्ञापित किया और भविष्य में हर विकासखंड में इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित करने की घोषणा की।

मुख्य बिंदु (Key Highlights):

आयोजन स्थल: विकास भवन सभागार, बिजनौर
मुख्य अतिथि: जय सिंह कुशवाहा (प्रभागीय निदेशक, सामाजिक वानिकी प्रभाग)
मुख्य वक्ता: धनश्याम वर्मा (उप निदेशक कृषि), योगेन्द्र पाल सिंह (विषय विशेषज्ञ)
विशेष सहभागिता: डब्ल्यू. डब्ल्यू. एफ., यूपी डास्प, नमामि गंगे टीम
मुख्य आकर्षण: जैविक उत्पादों की प्रदर्शनी, जीवामृत-बीजामृत पर प्रशिक्षण
मुख्य उद्देश्य: गंगा संरक्षण और टिकाऊ कृषि प्रणाली का विस्तार

कार्यशाला की झलकियाँ

  • नमामि गंगे एंथम के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ
  • विशेषज्ञों द्वारा जैविक खेती की तकनीक पर प्रस्तुति
  • किसानों के लगाए गए जैविक उत्पादों के स्टॉल
  • गंगा ग्रामों से आए कृषकों की सक्रिय भागीदारी

निष्कर्ष — “प्राकृतिक खेती ही सतत विकास का आधार”

बिजनौर की इस पहल ने यह साबित किया कि गंगा की स्वच्छता, धरती की उर्वरता और किसान की समृद्धि — ये तीनों एक ही सूत्र में बंधे हैं।
जब खेती प्राकृतिक होगी, तब जीवन भी प्राकृतिक और स्वस्थ रहेगा।

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 संपादकीय टिप्पणी:
“प्राकृतिक खेती केवल पर्यावरण की रक्षा नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा है।
जिला गंगा समिति बिजनौर की यह पहल पूरे प्रदेश के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन सकती है।”
 

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