जनहित गारंटी कानून की जगह विभागीय बोर्ड! सिंचाई विभाग ने शिकायत को ऐसे किया “क्लोज़”
आरटीआई कार्यकर्ता बोले—“विभाग को पता ही नहीं कि कानून क्या है!”
📍 स्थान: नजीबाबाद, बिजनौर | रिपोर्ट: अवनीश त्यागी
नजीबाबाद। जनहित की शिकायतों को निपटाने में विभागीय लापरवाही का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। पूर्वी गंगा नहर निर्माण खंड-6, नजीबाबाद के अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश जनहित गारंटी कानून से जुड़े एक गंभीर प्रकरण को ऐसे निपटाया, मानो यह कोई औपचारिकता मात्र हो!
आरटीआई कार्यकर्ता मनोज शर्मा की शिकायत पर विभाग ने जनहित गारंटी कानून का बोर्ड लगाने के बजाय साधारण विभागीय बोर्ड लगाकर ही पूरा मामला बंद कर दिया।
क्या है पूरा मामला
आदर्श नगर निवासी मनोज शर्मा, जो एक सक्रिय आरटीआई कार्यकर्ता हैं, ने शासन और प्रशासन से मांग की थी कि
“जनपद के सभी सरकारी कार्यालयों में उत्तर प्रदेश जनहित गारंटी कानून के तहत जनहित कार्यों की तय समयसीमा दर्शाने वाले बोर्ड लगाए जाएं।”
इस पर सिंचाई विभाग के उच्च अधिकारियों ने रिपोर्ट मांगी — लेकिन हुआ उल्टा!
पूर्वी गंगा नहर निर्माण खंड-6, नजीबाबाद के अधिशासी अभियंता त्रिलोकचंद ने बिना जांच किए,
कार्यालय के बाहर लगे विभागीय सूचना बोर्ड का फोटो लगाकर जवाब भेज दिया और शिकायत को “निस्तारित” घोषित कर दिया।
क्या है जनहित गारंटी कानून
उत्तर प्रदेश जनहित गारंटी अधिनियम 2011 के तहत
सरकारी विभागों को आम नागरिकों के हित से जुड़े कार्य एक निर्धारित समय सीमा में पूरे करने होते हैं।
साथ ही, प्रत्येक कार्यालय में एक सूचना बोर्ड लगाना अनिवार्य है,
जिसमें यह स्पष्ट लिखा होता है कि कौन-सा कार्य कितने दिनों में किया जाएगा।
लेकिन नजीबाबाद के सिंचाई विभाग ने न तो यह बोर्ड लगाया,
और न ही यह समझने की कोशिश की कि शिकायतकर्ता ने आखिर मांगा क्या था!
💬 आरटीआई कार्यकर्ता का आरोप
आरटीआई कार्यकर्ता मनोज शर्मा ने कहा —
“सिंचाई विभाग को जनहित गारंटी कानून की जानकारी ही नहीं है।
विभाग ने कानून से जुड़ी शिकायत को विभागीय बोर्ड लगाकर बंद कर दिया,
यह जनता की जानकारी छिपाने और कानून की अवहेलना है।
मैं पूरे मामले की जानकारी शासन को दोबारा भेजूंगा।”
विभाग की लापरवाही पर उठे सवाल
- कानून से जुड़े बोर्ड की जगह लगाया विभागीय बोर्ड
- रिपोर्ट बिना तथ्य जांचे उच्च अधिकारियों को भेजी
- शिकायत को “औपचारिकता” में बदलकर निस्तारित किया
- विभाग की कार्यशैली पर जनता के बीच उठे सवाल
अब आगे क्या
मनोज शर्मा ने बताया कि वह इस पूरे मामले की शिकायत
शासन स्तर पर पुनः दर्ज कराएंगे,
ताकि दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही हो सके
और जनता को उनके अधिकारों की सही जानकारी मिल सके।
तस्वीर में सच्चाई छिपी नहीं —
शिकायत में मांगा गया था जनहित गारंटी कानून बोर्ड,
लेकिन फोटो में लगा मिला विभागीय सूचना बोर्ड!
निष्कर्ष
यह मामला सिर्फ एक शिकायत का नहीं, बल्कि व्यवस्था में जड़ जमा चुके औपचारिक रवैये का उदाहरण है।
जहां जनहित की भावना, फाइलों के बोझ और “औपचारिक जवाब” में कहीं खो जाती है।
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