“कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघ-हाथी संघर्ष: अफजलगढ़ की ढेला रेंज में मादा हाथी की मौत”
हाइलाइटर
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“गश्त के दौरान बाघ ने किया हमला, घायल हुई मादा हाथी”
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“पशु चिकित्सकों की देखरेख में चला इलाज, लेकिन नहीं बच सकी जान”
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“पोस्टमार्टम के बाद शव का निस्तारण, वन विभाग ने जताई चिंता”
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“संरक्षित प्रजातियों के बीच टकराव ने उठाए बड़े सवाल”
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“विशेषज्ञ बोले – आपातकालीन वन्यजीव चिकित्सा व्यवस्था की ज़रूरत”
📌 घटना का पूरा विवरण
अफजलगढ़ क्षेत्र के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की ढेला रेंज में वन विभाग की गश्त के दौरान अचानक बाघ ने एक मादा हाथी पर हमला कर दिया। इस हमले में हाथी गंभीर रूप से घायल हो गई। मौके पर मौजूद वन कर्मियों ने तत्काल सूचना दी और पशु चिकित्सकों की टीम को बुलाया गया।
घायल हाथी को निरंतर उपचार दिया गया, लेकिन चोटें इतनी गंभीर थीं कि इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया। इसके बाद विशेषज्ञ टीम ने पोस्टमार्टम कर शव का निस्तारण कर दिया।
क्यों चिंता का विषय है यह घटना?
यह घटना सिर्फ एक जानवर की मौत भर नहीं है, बल्कि वन्यजीव संरक्षण की गंभीर चुनौतियों को सामने लाती है।
- बाघ और हाथी दोनों ही संरक्षित प्रजातियाँ हैं, और इनके बीच संघर्ष वन्य जीवन के संतुलन पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
- बड़े वन्यजीवों के लिए उपलब्ध चिकित्सकीय सुविधाएँ और आपातकालीन रिस्पॉन्स सिस्टम की सीमाएँ उजागर हो गई हैं।
- बढ़ते मानव–वन्यजीव संघर्ष के बीच ऐसी घटनाएँ संरक्षण योजनाओं के पुनर्मूल्यांकन की माँग करती हैं।
विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि जंगलों में संसाधनों की कमी और प्राकृतिक क्षेत्र के सिमटने के कारण बाघ और हाथियों के बीच ऐसे टकराव बढ़ रहे हैं। उनका कहना है कि सुधारित मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, वन्यजीव रेस्क्यू सेंटर और आपातकालीन हस्तक्षेप योजनाएँ ही भविष्य में ऐसे हादसों को रोक सकती हैं।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की ढेला रेंज में हुई इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वन्यजीव संरक्षण केवल जंगल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सतत, वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण की माँग करता है।
वन विभाग और विशेषज्ञों को अब मिलकर यह तय करना होगा कि बाघ और हाथी जैसे बड़े और संवेदनशील प्राणियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर क्या ठोस कदम उठाए जा सकते हैं।



