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22 जिलों में अधिवक्ताओं की ऐतिहासिक हड़ताल, न्यायिक कार्य ठप

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की मांग ने पकड़ा निर्णायक मोड़

22 जिलों में अधिवक्ताओं की ऐतिहासिक हड़ताल, न्यायिक कार्य ठप — रजिस्ट्री कार्यालयों पर ताले, प्रधानमंत्री को सौंपे गए ज्ञापन

पश्चिमी उत्तर प्रदेश | विशेष रिपोर्ट

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की मांग एक बार फिर पूरे उबाल पर है। हाईकोर्ट बेंच स्थापना केंद्रीय संघर्ष समिति, मेरठ के आह्वान पर आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जनपदों में अधिवक्ताओं ने एकजुट होकर न्यायिक कार्यों का पूर्ण बहिष्कार किया। जिला अदालतों में सन्नाटा पसरा रहा, रजिस्ट्री कार्यालयों पर ताले जड़े गए और केंद्र सरकार को स्पष्ट संदेश दिया गया कि अब यह आंदोलन निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है।

बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, बुलंदशहर, हापुड़, बागपत, शामली, अमरोहा, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर सहित पूरे पश्चिमी यूपी में अधिवक्ता सड़कों पर उतरे। इस व्यापक हड़ताल का असर न केवल न्यायिक व्यवस्था पर पड़ा, बल्कि आम जनता को भी अदालतों में लंबित मामलों की गंभीरता का अहसास हुआ।

बिजनौर में दिखा आंदोलन का सबसे मुखर रूप

बिजनौर में जिला बार एसोसिएशन और रेवेन्यू बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं ने कचहरी परिसर में एकजुट होकर प्रदर्शन किया। अधिवक्ताओं ने रजिस्ट्री कार्यालय पर ताला जड़ दिया, जिससे न्यायिक कार्य पूरी तरह बाधित रहा। इसके बाद अधिवक्ताओं का प्रतिनिधिमंडल उप जिलाधिकारी सदर श्रीमती रीतू रानी से मिला और प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा।

ज्ञापन में स्पष्ट शब्दों में कहा गया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले, औद्योगिक और कृषि प्रधान क्षेत्र के लिए हाईकोर्ट बेंच अब केवल मांग नहीं, बल्कि न्यायिक आवश्यकता बन चुकी है।

45 वर्षों से जारी है संघर्ष

यह आंदोलन कोई तात्कालिक या भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि 45 वर्षों से अधिक समय से चला आ रहा संगठित संघर्ष है। अधिवक्ताओं का कहना है कि जब देश के कई छोटे राज्यों और क्षेत्रों में हाईकोर्ट की बेंच स्थापित की जा सकती हैं, तो फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे विशाल क्षेत्र को इससे वंचित रखना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की दूरी, यात्रा का खर्च, समय की बर्बादी और आम नागरिकों की असुविधा — ये सभी कारण इस मांग को और अधिक मजबूती प्रदान करते हैं।

संसद तक पहुंची आवाज, सांसदों ने उठाया मुद्दा

इस आंदोलन की एक अहम कड़ी 26 नवंबर को देखने को मिली, जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं ने अपने-अपने सांसदों का घेराव कर ज्ञापन सौंपा। अधिवक्ताओं ने सांसदों से आग्रह किया कि वे संसद के शीतकालीन सत्र में हाईकोर्ट बेंच का मुद्दा मजबूती से उठाएं।

परिणामस्वरूप:

  • बिजनौर सांसद चंदन सिंह चौहान,
  • नगीना सांसद चंद्रशेखर आज़ाद,
  • मुरादाबाद सांसद रुचिवीरा

ने संसद में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए हाईकोर्ट बेंच की मांग को मुखरता से उठाया। इससे अधिवक्ताओं में यह भरोसा जगा है कि उनका संघर्ष अब केवल सड़क तक सीमित नहीं, बल्कि संसद के पटल तक पहुंच चुका है

22 जिलों में एक साथ बहिष्कार — बड़ा संदेश

आज की हड़ताल की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि यह एक-दो जिलों तक सीमित न रहकर 22 जिलों में एक साथ आयोजित की गई। यह अपने आप में एक दुर्लभ उदाहरण है, जब पूरे क्षेत्र के अधिवक्ता एक स्वर में खड़े दिखाई दिए।

अधिवक्ताओं का कहना है कि यह एकजुटता सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए स्पष्ट संकेत है कि अब इस मांग को टालना आसान नहीं होगा।

कौन-कौन रहे आंदोलन में शामिल

बिजनौर में हुए प्रदर्शन में बड़ी संख्या में अधिवक्ता मौजूद रहे। प्रमुख रूप से:

  • जिला बार एसोसिएशन अध्यक्ष: यशपाल सिंह
  • वरिष्ठ उपाध्यक्ष: मुनेश चाहल
  • सचिव: विशाल अग्रवाल
  • पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष: गुलसिताब गुल
  • रेवेन्यू बार अध्यक्ष: ज्ञानेंद्र सिंह
  • सचिव: हेमेंद्र सिंह

सहित आलोक गोविल, पंकज बिश्नोई, करतार सिंह, अनिल चौधरी, मनोज कुमार, राहुल बतोला, अरविंद कुमार, निपेंद्र सिंह, तौकीर, मोहित मलिक, मोहित राठी, ममतेश चौहान, जैनब खान, तस्लीम, तस्सबर, पवन शर्मा, घनश्याम सिंह समेत सैकड़ों अधिवक्ता मौजूद रहे।

विश्लेषण: क्यों जरूरी है पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश:

  • जनसंख्या की दृष्टि से देश के बड़े क्षेत्रों में शामिल
  • मुकदमों की संख्या अत्यधिक
  • औद्योगिक, कृषि और सामाजिक विवादों का केंद्र

ऐसे में एक ही हाईकोर्ट पर निर्भर रहना न केवल न्यायिक दबाव बढ़ाता है, बल्कि न्याय में देरी का कारण भी बनता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हाईकोर्ट बेंच की स्थापना से:

  • मामलों का त्वरित निस्तारण होगा
  • आम जनता को सस्ती और सुलभ न्याय व्यवस्था मिलेगी
  • न्यायिक ढांचे पर बोझ कम होगा

आगे क्या? आंदोलन का अगला चरण

अधिवक्ताओं ने संकेत दिए हैं कि यदि शीघ्र सकारात्मक निर्णय नहीं लिया गया, तो:

  • आंदोलन और तेज किया जाएगा
  • बड़े पैमाने पर जनसमर्थन जुटाया जाएगा
  • राजनीतिक और संवैधानिक स्तर पर दबाव बढ़ाया जाएगा

निष्कर्ष

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की मांग अब केवल अधिवक्ताओं की नहीं, बल्कि आम जनता की आवाज़ बनती जा रही है। 22 जिलों में एक साथ हुआ न्यायिक बहिष्कार इस बात का संकेत है कि यह आंदोलन अब निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुका है।

अब निगाहें केंद्र सरकार और न्यायिक तंत्र पर टिकी हैं —
क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मिलेगा उसका न्यायिक अधिकार, या संघर्ष और लंबा चलेगा?

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